भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जीवन / संगीता गुप्ता
Kavita Kosh से
					
										
					
					
जीवन 
ब्लाटिंग पेपर की तरह 
सब सोख लेता है 
सच - झूठ 
दुख - सुख 
स्याह - उजास 
आस - हताष
और जब 
ऐसा लगता है कि 
कहीं कुछ नहीं बचा 
तब चुपके से 
कानों में कोई 
कह जाता है 
अभी बची हुई हैं 
स्मृतियाँ 
	
	