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जीवन एक पहेली / ऋचा दीपक कर्पे
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जीवन एक पहेली
कुछ उलझी-सी कुछ सुलझी सी...
हर पल नई नवेली
कुछ रुकती-सी कुछ चलती सी...
कुछ सवाल कुछ जवाब...
कुछ चेहरे कुछ नक़ाब...
कभी खुद से ही खफा हूँ मैं,
हैं शिकायतें बेहिसाब...
कौन कब अपना है...
कौन कब पराया है?
किसके दिल में कब क्या है
ये कौन जान पाया है?
सामने ढेरों सवाल हैं...
पर जवाब कहाँ है?
कहने को मेरा कुछ भी नही
कहने को सारा जहाँ है...!
चलती जा रही हूँ...
कुछ ठहरी-सी, कुछ सहमी-सी...
जीवन एक पहेली
कुछ उलझी-सी कुछ सुलझी सी...