भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीवन खोजता आधार / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीवन खोजता आधार!

हाय, भीतर खोखला है,
बस मुलम्मे की कला है,
इसी कुंदन के ड़ले का नाम जग में प्यार!
जीवन खोजता आधार!

बूँद आँसू की गलाती,
आह छोटी-सी उड़ाती,
नींद-वंचित नेत्र को क्या स्वप्न का संसार!
जीवन खोजता आधार!

विश्व में वह एक ही है,
अन्य समता में नहीं हैं,
मूल्य से मिलता नहीं, वह मृत्यु का उपहार!
जीवन खोजता आधार!