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जो... जब...जैसा माँगा / शर्मिष्ठा पाण्डेय
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जो जब जैसा माँगा जवाब मिला,
सब तुम्हारा ही तो है
धरती अम्बर सब तुम्हारा जितना चाहो ले लो
ज्यादा से ज्यादा लेना चाहती थी तो
पूरी लेट गयी धरती पर
पाया मेरे आकार से ज्यादा
न ज़मीं थी मेरी न आसमां
देह आकार के इतर पुरुषों के बनाये पाताली खड्ड थे
और, उतने ही आसमान के इतर शून्य सिर्फ शून्य
बीच में थी हवा सिर्फ और सिर्फ हवा
ताकि मैं सांस ले सकूँ
और फिर पूछूं 'मेरा क्या है' ?
कहा ना सब तुम्हारा ही तो है 'स्त्री'
'मुझे जो चाहिए था मुझमें ही समाया मिला
ये महज़ इत्तेफाक था की तुम न मेरे हुए '