भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जो उसे पसन्द नही / गुँजन श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
उसे कुछ शब्द, बस, पसन्द नही थे
रोक दिया करती थी वो
अचानक ही मुझे
सम्वादों के बीच !
हालाँकि कभी- कभार उनके मायने
नापसन्द करने लायक नही भी होते थे
फिर भी,
जो उसे पसन्द नही
वो भाषा में किस काम की ?
और जिसे वो सुनना नही चाहती
वो मेरी जुबां पे क्या कर रहा है?
ये मेरे लिए इक्कीसवीं सदी का
एक गम्भीर सवाल रहा है !