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ज्यों प्रवेश / मोहन सगोरिया
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बून्द-बून्द झर रहा
घड़े से नीर
शनैः-शनैः
शीतल हो रहा
अस्तित्व
नींद के जगत में
ज्यों प्रवेश है स्वप्न का।