भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

झरना / गौतम-तिरिया / मुचकुन्द शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

निकल रहल पत्थर के तोड़के
उतर रहल पर्वत के फोड़के

दौड़ रहल दिन-रात जोर से भोर से
बड़का अवाज कैने आवे कौन ओर से

पानी हहाल बमताल तरुणाई सन
माने नै रोक टोक काला पहाड़ के
ढाही लगावे हे हँटावे हे दहाड़ के

फूलल बनफूल के सुगंध मिलल धारामें
कजै-कज्र मोर रहल नाच ई किनारा में

कजै गिरल पेड़ पात कजै करे झात्-झात्
खूब उफनात ई जब-जब बरसात आत

पानी के खजाना तो कजै नै जनावे हे
केकरो हँसावे ई केकरो कनावे हे

मुक्त हे धार एकर
ढाहत किनारा केकर

गीत नाद अप्पन ई रोजे सुनावे हे
खूब हे हहात दौड़ल कने से ई आवे हे

बाघ सिंह हिरण के पानी पिलावे भागल
दौड़ल बमताहा चलल जाय ई कहाँ पागल
दूध सन पानी है बड़का मनमानी है
दौड़ रहल झरना एकर अमरित सन पानी है