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झर्र बिलैया! / योगेन्द्र दत्त शर्मा
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आओ, मिलकर धूम मचाएँ,
इसे चिढ़ाएँ, उसे बिराएँ,
कहें अँगूठा दिखा-दिखाकर
टिल-लिल-लिल-ली झर्र बिलैया!
बंटी को आवाज लगाएँ,
और कहीं जाकर छिप जाएँ,
रहे ढूँढ़ता इधर-उधर वह,
पर हम उसके हाथ न आएँ।
फिर पीछे से आकर पूछें-
‘‘कैसी रही, बता रे भैया!’’
टिल-लिल-लिल-ली झर्र बिलैया!
यहाँ-वहाँ उसको दौड़ाएँ,
घुमा-घुमाकर खूब छकाएँ,
वह तो भागे दूर-दूर तक,
पर हम आस-पास मँडराएँ।
जब वह थक जाए, तो नाचें
ठुमक-ठुमक-ठुम, ता-ता-थैया!
टिल-लिल-लिल-ली झर्र बिलैया!