झोला-1 / भारत यायावर
मेरे कन्धे पर
रहता है
हमेशा एक झोला
जब छोटा था
दीदी बड़े भैया के
फटे पैंट से
बनाती थी झोला मेरे लिए
मैं उसमें रखकर
अपनी स्लेट और
'मनोहर पाल पोथी'
जाता था कदमा स्कूल
लोग
मेरे झोले पर हँसते थे
मास्साब कहते थे
लाने को कोई अच्छा झोला
पर यह झोला
मेरे मिट्टी के मकान की तरह ही
प्यारा था मुझे
जो हर बरसात में
बुरी तरह चूता था
और कभी-कभी
ढह भी जाता था
मेरे उस झोले में
मेरी दीदी का स्नेह छुपा था
जो कितने जतन से
बनाया करती थी झोला मेरे लिए
जब बड़ा हुआ
मेरी तरह मेरा झोला भी
बड़ा हुआ
कालेज की लड़कियों मे कहा--
यह क्या तुम झोला लटकाते हो
बेढंगे लगते हो
कमती है स्मार्टनेस
इस झोले से
प्रोफ़सरों ने कहा--
वो भारत ?
वो झोले वाला ?
और मैं
उन सभी से
अलग-थलग होता गया
अपने झोले के साथ
अब
कालेज कि दुनिया से बाहर
साहित्यकारों की दुनिया में हूँ
यहाँ
झोला लटकाना फ़ैशन है
लोग यहाँ
झोला लटका कर ही
बनते हैं साहित्यकार
पर मैं क्या करूँ ?
झोला मेरे बचपन की याद है
मेरी दीदी के स्नेह
की ख़ुशबू इस झोले से
मिलती हर पल मुझे
रात को बिस्तर पर
लेटता हूँ थका-मांदा
दिन भर का
तो दीवार पर टंगा
यह झोला
बीते हुए संघर्षों की याद दिलाता है
क्योंकि
मुसीबतों का
एकमात्र साथी
यही रहा है मेरा