भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
टाबर / दुष्यन्त जोशी
Kavita Kosh से
टाबर
खेलणौ चावै
टाबर
हांसणौ चावै
टाबर
रोवणौ चावै
टाबर
बोलणौ चावै
टाबर
देखणौ चावै
टाबर
पूछणौ चावै
टाबर
बताणौ चावै
टाबर
सोवणौ चावै
टाबर
जागणौ चावै
टाबर
गावणौ चावै
टाबर
न्हावणौ चावै
टाबर
उडणौ चावै
टाबर
तिरणौ चावै
टाबर
चढणौ चावै
टाबर
उतरणौ चावै
पण
टाबर री
नीं कोई औकात
टाबर री मिटगी
स्सा' सौगात।