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डर / बसंत त्रिपाठी
Kavita Kosh से
परिन्दे को इश्क हो जाए पिंजरे से
फूलों से बन्द हो जाए महक का उठना
शामें न उदास करती हों
न ख़ुश
हमेशा काम से ही निकलें घर से
बच्चे तुतलाएँ नहीं
चिड़िया घोंसला न बनाएँ घरों में
गिलहरी और तोते के रंग भूल जाएँ
भूल जाएँ अपने बचपन की शक्ल
ट्रेन सुरंग से गुज़र रही हो
और पता ही न चले।