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डिप्सोमेनिया / प्रदीप जिलवाने
Kavita Kosh से
अँधेरे की शक्ल पहचानने लगा हूँ मैं
उजाले को आवाज से जानने लगा हूँ मैं
मगर समय की कोई झरी हुई पत्ती नहीं हूँ मैं
कि मैं फिर जन्म लेना चाहता हूँ
मुझे अपने गर्भ में जगह दे जिन्दगी।
(नशा करने की प्रबल इच्छा की स्थिति)