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ढाई अक्षर / गिरधर राठी
Kavita Kosh से
बोलें तो बिलाएँ हवाओं में
लिखने से होंगे बदरंग
फुदकते आएँ अचानक वे
टंग जाएँ फुनगी पर
चहकें ललमुनियाँ के संग
चटख़ सुआपंखी
लहराएँ लहरों में
आएँ निरक्षर वे
हाँ, इस कठिन बेहूदा तरक़्क़ी के ज़माने में भी!