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ढेर सारा प्यार / महेश सन्तोषी
Kavita Kosh से
प्यार का कोई ढेर नहीं होता,
हमने तो नहीं देखा
शायद तुमने कहीं देखा है
इसलिए कागज में लपेटकर
मुझे ढेर सारा प्यार भेज दिया,
जैसे -
मन के अपरिमित अपनत्व को
तुमने दो शब्द दिए, आकार दिया,
एक अनन्यतम एहसास को सुन्दरतम् आकृति दी,
साँसों में प्रवाहित किसी सत्य को
वैसा का वैसा शत्-शत् साकार किया,
मात्राएँ दीं तुमने अनुभूतियों को
सीमित अक्षरों को असीमताएँ दीं,
पास में तो नहीं थीं तुम या तुम्हारी बाँहें
पर शब्दों में, अपनी लम्बी-लम्बी बाँहें हमें भेज दीं,
हमारे सह-अस्तित्व को
तुमने अर्थ दिया, अस्मिता दी,
आशाओं से आच्छादित आकाश दिया,
अपनी स्नेहसिक्त, उंगलियों,
हथेलियों से ही नहीं
अपने स्पन्दित प्राणों से भी
हमारे स्पन्दित प्राणों को छू लिया!