तापमापी और रेत / अश्वनी शर्मा
तापमापी के पारे पर
कसा जाता है रेत का धैर्य
ऊपर नीचे होते पारे को
रेत ताकती है
मॉनिटर पर चलते
हृदय की धड़कन के
ग्राफ की तरफ
ग्राफ बता सकता है
हृदय की धड़कन की गति
लेकिन नहीं नाप सकता
हृदय के भाव, कल्पनाएं, उड़ान
वैसे ही पारा जानता है
रेत का ताप
लेकिन नहीं जान सकता
रेत की गहराई
रेत का दर्द
कैसे बन जाते हैं
समुद्र की लहरों से
एक के बाद एक
रेत के सम रूपाकार
छुपे-छुपे हैं रेत के राज
किसी स्त्री मन की तरह
मन की गांठो-सी
फोग की जडे
़
ताप से त्रस्त
छांह ढूंढती कोई
खींप, बुई
उदास बेवा-सा
सेवण का बूटा
सबको सहेज रही है रेत
बरसों से
सारा दिन तप कर भी
गाना नहीं भूली है
चांदनी रात के साथ
नहीं माप पायेगा तापमापी
कभी भी कि रेत
क्यों गाती है चांदनी रात में
क्यों हरख जाती है
पहली बरसात में
क्यों अलसाती है
पूस कि रात में
क्यों चुपचाप होती है
जेठ कि दुपहरी में
क्यों बन जाती है
काली-कराली आंधी
चक्रवात, प्रभंजन
असहनीय हो जाता है जब ताप।