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तिमिर का छोर / गोपालदास "नीरज"
Kavita Kosh से
है नहीं दिखता तिमिर का छोर!
आँख की गति है जहाँ तक
तम अरे, बस, तम वहाँ तक
दूर धुँधली दिख रही पर सित कफ़न की कोर।
है नहीं दिखता तिमिर का छोर!
खो गया है लक्ष्य तम में
धुँध-धुँधलापन नयन में
और पड़ते जा रहे हैं पैर भी कमजोर।
है नहीं दिखता तिमिर का छोर!
मुक्ति-पथ इसमें छुपा है
और जीवन-अथ छुपा है
क्योंकि पहले फ़ूटती है ज्योति तम की ओर।
है नहीं दिखता तिमिर का छोर!