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तुक की व्यर्थता / भारत भूषण अग्रवाल
Kavita Kosh से
दर्द दिया तुमने बिन माँगे, अब क्या माँगू और ?
मन के मीत ! गीत की लय, लो, टूट गई इस ठौर
गान अधूरा रहे भटकता परिणति को बेचैन
केवल तुक लेकर क्या होगा : गौर, बौर, लाहौर ?