तुम,मैं और आकाश / रेखा
मेरी आँखों में
जब नहीं होते
तुम
तो होता है पूरा
आकाश
या तुम होते हो
या आकाश होता है
मैने तुम्हें आकाश में पाया
और तान लिया
सिर पर
एक सुखद छाया की तरह
आकाश की तरह
तुम्हें पाती हूँ
कभी साकार
कभी निराकार
बँधन है जिसका
दिशाएँ
हैं भी
और नहीं भी
बादलों की तरह घिरा हुआ
यह गहन अवसाद
या बूँदों में
चुपचाप
रिसता दिन
क्या तुम्हारे ही चेहरे हैं
उदास
दर्द-भीगे
सच
कभी बहुत-सुन्दर लगते हो
तुम
शिशु सूरज की तरह सलोने
और मेरा प्यार
बहने लगता है तुम्हारी ओर
अजस्र धाराओं में
कभी वही तुम
तपने लगते हो
मध्यान्ह के सूरज की तरह
तुम्हारे आग्नेय पौरुष से
झुलसी हुई
मैं
दुबक जाती हूँ
गर्मी की अलस-दुपहरी-सी
फिर वही तुम
ढलते सूरज की तरह
हो उठते हो
वीतराग
और मैं चकित-सी
प्रणाम करती हूँ तुम्हें
सुनो दोस्त
तुम्हें कैसे पुकारूँ
तुम जो शिशु से सरल
पुरुष की तरह प्यासे
शिव-सरीखे वीतराग योगी हो
तुम जो आकाश हो
अनंत
धरती-सी ताकती हूँ तुम्हें
बाँधती हूँ नाना रूपों में
तुम वहीं रहते हो
कभी असीम
कभी ससीम
जब धरती होती है
आकाश होता है
मैं होती हूँ
तुम होते हो
पर जब कुछ न होकर
होता है एक
अंतहीन विस्तार
तब भी होती है
दो आँखें
रूप खोजती
नाम ढूँढती
चकित आँखें
तभी तो
मेरी आँखों में
या तुम होते हो
या आकाश होता है
1982