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तुम्हारा इन्तज़ार / रंजीता सिंह फ़लक

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कई
प्रतिक्षाएँ
होती हैं अन्धी
अन्तहीन सुरँग-सी,
जिनमें
आँख की कोर से
प्यार के मौसम में खिले ढेर सारे ख़्वाबों के फूल
और
ख़्वाहिशों के दस्तावेज़
गिर जाते हैं,
ऐसे कि
फिर कभी नज़र नहीं आते

और
बरसों बाद
जब
बरसता है याद का कोई सिरा
जब
डूबने लगता है सारा अस्तित्व
तब
कहीं अचानक
उस गहरी
अन्तहीन सुरँग के
मुहाने पर दिखते हैं
मुरझाए ख़्वाबों के फूल
और
आधी-अधूरी इबारत वाली
ख़्वाहिशों के दस्तावेज़
जिन्हें,
जैसे ही
वक़्त की नाज़ुक उँगलियाँ
सहेजना चाहती हैं
वे
हो जाते हैं चिन्दी चिन्दी

झड़ जाती है
उस फूल की हर सूखी पँखुड़ी
पर
कुछ ख़ुशबू
कुछ स्याही बची रहती है
एक
प्रमाण-पत्र की तरह
कि
कभी किया था
मैंने तुम्हारा इन्तज़ार
उतनी ही शिद्दतों से ।