भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम्हारी बारिश / प्रवीन अग्रहरि
Kavita Kosh से
अक़्सर मेरे अन्तस् में
तुम बारिश बन कर
जोर-जोर से बरसती हो,
तब मेरी यादों के आसमान में
इंद्रधनुष का एक पुल निर्मित हो जाता है।
मैं उसके सहारे अपने अतीत पर जाता हूँ
और उलीचने लगता हूँ मन के आँगन में भरी तुम्हारी बारिश।
तुम बरसती रहती हो
मैं उलीचता रहता हूँ।
इस तरह हम दोनों रात गुजार देते हैं।