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तुम कहते तो / प्रगति गुप्ता
Kavita Kosh से
काश तुम्हारी
उस अनकही पीङा तक
मैं पहुँच पाती
तुम कहते तो...
मैं मरहम बन
उन छिपे घावों को सहला जाती
तुम कहते तो...
साथ नहीं चल रही तुम्हारे
तभी तो कहने को कहती हूँ...
मौन मुझे भी छूता है
ये मुझसे बेहतर तुम्हें पता है...
माना कि
सबके अपने सुख अपने दुख है
पर तुम ने खुद के
दिल को सुना होता,
उस निशब्द मौन को कहा होता...
जो मेरा और तुम्हारा था
उसको तुम कहते तो...