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तुम कहाँ हो / बलबीर सिंह 'रंग'
Kavita Kosh से
पधारी चाँदनी है तुम कहाँ हो
तुम्हारी यामिनी है, तुम कहाँ हो
समस्यायें उलझती जा रही हैं
नियति उन्मादिनी है, तुम कहाँ हो
अमृत के आचमन का अर्थ ही क्या
तृषा वैरागिनी है तुम कहाँ हो
तिरोहित हो रहा गतिरोध का तम
प्रगति अनुगामिनी है, तुम कहाँ हो
तुम्हारे 'रंग' की यह रूप-रेखा
बड़ी हतभागिनी है, तुम कहाँ हो