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तुम बादल बन / सैयद शहरोज़ क़मर

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तुम बादल बन बरसोगे
भले वर्षा
तेज़ाबी हो

स्वीकार्य है हमें
ये परिस्थितिजन्य
विवशता है
इसे
नपुंसकता से भी
कह सकते हैं।

04.07.97