तूफ़ान के बाद / बरीस पास्तेरनाक
हवा में पूरी ताज़गी है गर्जन-तर्जन के बाद
और हर चीज़ ख़ुशियाँ मना रही है, जग रही है ।
अपने नील-ल्हित गुच्छों के पूर्ण-प्रस्फ़ुटन के साथ
बकाइन जैसे साँस ले रही है स्वर्ग की हवा ।
नालों में पानी उपला रहा था
मौसम के परिवर्तन से सब-कुछ नया और ताज़ा लग रहा था।
इस बीच आकाश पर साए हल्के होते जा रहे थे
और घोरतम काले बदलों के पार नीला था आकाश ।
एक कलाकार का हाथ जैसे बहुत अधिक कुशलता से
पोंछ देता है अपने आधार-पृष्ठ पर से गर्द और गंदगी,
वास्तविकता और ज़िंदगी, भूत और वर्तमान वैसे ही,
उसके रंग की अन्विति से नहाकर बदले रूप में प्रकट हुए हैं ।
आधी से अधिक ज़िंदगी की याद गुज़र गई
तेज़ी से कौंधी बिजली की तरह ।
शताब्दी अब किसी पहरे की मोहताज नहीं ।
समय आ गया है कि
भविष्य को जाने देना चाहिए अपनी राह पर ।
वह न कोई क्राँति है और न कोई भूमिकंप
जो मार्ग स्पष्ट करते हैं नए और बेहतर दिनों के,
बल्कि वह अभिव्यक्ति, उदारता और पीड़ा है किसी आत्मा की
जो देती है पीड़ा और प्रज्वलन ।
अँग्रेज़ी भाषा से अनुवाद : अनुरंजन प्रसाद सिंह