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तोहर निठुरपना / अरुण हरलीवाल
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मेह
तोहर नेह के
ऊ घड़ी
काहे न बरसऽ हे,
जउन घड़ी जान हमर
बून-बून लऽ तरसऽ हे।
समय जब ठँूस दे हे
दिल-दिमाग-देह में
लह-लह अँगार,
इआर!
दुर्लभ हो जा हे
काहे तब तोहर दीदार?
आँख हमर,
हांेठ हमर,
कंठ हमर,
कान हमर...
पोरे-पोर देह के, रोमे-रोम देह के
रेगिस्तान के दुपहरिया-सन
जरे जब लगऽ हे,
सच्चो, तोहर निठुरपना
खले बहुत लगऽ हे।