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त्रयोदशसर्ग / अम्ब-चरित / सीताराम झा

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1.
आँङन घर निपवाय सुनयना नवकोबर सजबौलनि
नारिसमाज हकारि मुदितमन मानसहित बजवौलनि।
शुभ शुभ कहि अहिपन दय गाइनि सोहर मंगलगौलनि
पुस्तक पीढ़ी दय पुरहित कैं बेदी लग बैसौलनि॥

2.
विष्टर जल मधुपर्क समिध कुश सु्रवश्रुचि आज्यस्थाली
सिन्दुर लाबा धान दूबि दल चानन फूल क डाली।
सकल अर्हना वस्तु चतुर्गुन दिव्य चुनि आयल
संचित सकल रत्न मनि चारू वरक हेतु बहरायल॥

3.
नूतन-भूषण-वसनविभूषित ब्राह्मण नौकर नापित
कयलनि मुदित ततय वैवाहिक सब सामग्री स्थापित।
नयना योगिनि संग सुनयना योग टोन सब कैलनि
अरसीकाजर पारि सुवर्ण क कजरौटी में धैलनि॥

4.
काछुक लखरुइया में लेसल दीपक सरिसब तेलक
ठक बक भालरि आदि परीक्षण सामग्री सबमेलक।
डाला साजि सुनैत विप्रजनमुख सौं वेद क बानी
चलली परिछन करय वरक निजसखी सहित अधिरानी॥

5.
आङन सौं बहर दुआरि धरि आबि गीत शुभ गौलनि
मुनिवसिष्ठ आदि क आज्ञासौं वरकैं निकट बजौलनि।
नारि समाजक बीच चारुछवि चारू राजकुमारक
मानु तरेगन में शशि गुरु कवि बुधक बिम्ब मनहारक॥

6.
सबजनि देखि चकितचित बजली रानि हमरि छथि धन्या
देलनि विधि जमाय तहिरूपक जहिरूपक सब कन्या।
कहियो कतहु सुनल नहि ककरो पूर्ण भाग्य अहिरूपक
ई थिक जनम जनम कृत पुण्यक फल रानी ओ भूपक॥

7.
विनाआँखिनहिंनिरखिसकयक्यौ विनापाँखिनहिंऊरय
जनमि जगत में विनापुण्य नहि जनक मनोरथ पूरय।
धन्य भाग अवधेश क पुनि जे पुत्र रत्न ई पौलनि
धनि रानी कौसिल्यादि क जे जननी हिनक कहौलनि॥

8.
सारिक श्रेणी सौं बजली सुनि चतुर नारि मृदु बानी
झरकनियाँ जुगलत कहैत छी ई असमंजस मानी।
कनियाँ बिजुलीसदृश गोरि ओ वर मेघ क सनकारी
कत अजवंशजकुमार कतय पुनि निमिकुलराजकुमारी॥

9.
क्यौ बजली सुनुसखी! अहाँ विनुबुझनहिं कयल घमर्थन
हिनके कहल कथाक यथावत कैलहुँ अहूँ समर्थन।
मेघेथिक विजुलिक अधारओ ततहिचमकि नितराजय
जनक क पुत्री सौं विवाह पुनि अजवंशहि में छाजय॥

10.
तैं जुगलत सम्बन्ध भेल ई सत्य हिनक ई वानी
ई विधि हास करैत सकल जनि सहित सुनयनारानी।
विधिवत चारूवरक बुद्धि बल परिछि मुदितमन भेली
गरदिनि में लपटाय दुपट्टा कौतुक घर लय गेली॥

11.
नाचि गाबि योगिनि जन माँथा विअनि सुपती धैलनि
वशीकरन टोना टापर सौं सबहि क मन वश कैलनि।
शिव विरंचि सनकादि मुनीश्वर जनिक पार नहि पौलनि
तनिक नाक धय मिथिलादेश क नारि यथेच्छ घुमौलनि॥

12.
सबविधिवर क परीक्षण कै पुनि सब जनि सहित सहेली
सीतादिक चारिहु कन्या कैं वेदीलग लय गेली।
जानि समय कृतपूर्वकृत्य पुनि ततय जनक नृप ऐला
शान्ति पाठ पढ़ि विप्र पुरोहित सावधान सब भेला॥

13.
थापि कलश गनपति पूजन कै कैलनि अग्नि-स्थापन
बुझि अनुकूल समय वैवाहिक लग्न जीव शशि तापन।
सीताकरपल्लव कैं राम क करसरसिज धरबौलनि
मानू अरुण गुलाब क दल पर उत्पल विमलचढ़ौलनि॥

14.
“पत्नीहेतु सुता हम दैछी हिनक भरन ओ पोषन
करी अहाँ ओ करथि सुश्रुषा सौं अहाँक ई तोषन।
रहथि सदा अनुगत छायावत् अहिंकमनक अनुसारैं
करथि काज सब, करी अहूँ पुनि सब किछु हिनक बिचारैं”॥

15.
कहि विदेह ई वाक्य दुहू सौं “एवमस्तु” कहबौलनि
निरखि गगनगत सकल समन भै गगन गगन बरिगौलनि
लछुमन कैं अहिरूप उर्मिलानाम सुता पुनि देलनि
सहित प्रमोद सुमित्रानन्दन हाथ हुनक गहि लेलनि॥

16.
दय माण्डवी भरत कैं तहिविधिमुदित स्वस्ति कहबौलनि
कुमर शत्रुहन सौं श्रुतिकीर्ति क करसरोज गहबौलनि।
विन्दुरदान भेल शुभ शुभ कहि गाइनि मंगल गौलनि
विप्र वेदधुनि कयल देवगन दुन्दुभि दिव्य बजौलनि॥

17.
सकल बधू कैं सविधि विधिकरी वरक बाम बैसौलनि
रानी निरखि मुखपंकज हरखि जमाय चमौलनि।
विश्वामित्र वसिष्ठ आदि मुनि नृपति दुहू मिलि पण्डित
दय आशिष हरषित मन भेला निरखि वधूवर मण्डित॥

18.
घोघट दय दशरथ सोहाग में विविध रतनमनि देलनि
निरखि अनूपम पुत्रवधू मुख भूपक हृदय जुड़ैलनि।
हकरतिहारिनि विविध दान लहि सबहि मुदितमन भेली
भूपक भाग्य सराहि नारिगन अपन अपन घर गेली॥

19.
नौआ विविध निछाउर पुरहित कर्मदक्षिणा पौलनि
दान अमान पाबि आनन्दित बन्दीगन गुण गौलनि।
भेल विवाहकृत्य परिपूरित सबहि स्वस्थ मन भेला
चारु वधूवर पृथक-पृथक् निज-निज कोवरघर गेला॥

सवैया -

20.
पाबि प्रिया अनुकूल, मनोरथ पूरल चारिहु राजकुमार क
लोचन कोर घुमाय चकोर जकाँ मुखचन्द्र निहारथि दारक।
लोकक दृष्टि बचाय निहारि प्रियाननपंकज मानसहारक
चारिहु राजकुमारि क भेल हृदै पुनि हर्षित ताहिप्रकारक॥

21.
राजथि कोवर में मिथिलेशसुतासङ बालक श्रीअबधेशक
से छवि के कवि गाबि सकैछ थकैछ जतै मति शेषगनेशक।
सिद्धिसमृद्धिअपार ततै लखिपावन आङन श्रीमिथिलेशक
मानु एतै छथि आयल चारु पदारथदायक अंग परेशक॥

जनकसुता दशरथतनय-परिणयविधि यशपूर्ण।
अम्बचरित में भेल ई सर्ग त्रयोदश पूर्ण॥