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थके हुए सब / कुमार रवींद्र
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थके हुए सब
सब उदास हैं - कैसे ये दिन
कहाँ गईं वे
पुरखों ने बीजीं थीं कल
फागुनी हवाएँ
सूख गईं वे -
अमृतकुंडों से निकलीं थीं
जो धाराएँ
राख हुए सब
पेड़-गाछ हैं - ये कैसे दिन
गये रामजी थे
कल वन को
लौट न पाये
दीख रहे हैं
सोनहिरन के
घर-घर साये
अंधों के
चल रहे रास हैं - ये कैसे दिन
महासभा में
शाह कर रहे
अस्त हुए सूरज की पूजा
शहज़ादों को
दूर देश का
आधा-परधा सपना सूझा
होरी-धनिया के
उपास हैं - ये कैसे दिन