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थारै हुवण री / सांवर दइया
Kavita Kosh से
पगां हेठै धरती है
माथै ऊपर आभो
च्यारूंमेर खुली हवा
हवा में
थारै हुवण री सोरम
कठैई आवूं-जावूं
म्हारै सागै थे
अबै म्हनै डर किण बात रो !