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दहलीज से दुआरे / शिवबहादुर सिंह भदौरिया
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आओ
निकल कर बाहर
दहलीज से दुआरे-
तुम्हें चाँदनी पुकारे।
श्वेताम्बरा पुजारिन है यामिनी निराली,
यह हाथ में सहेजे है थाल फूल वाली;
यह आरती धरा के।
हर रूप की उतारे।
अब चाँदनी खुशी में फूली नहीं समाये,
बेलाग दोस्ती यह हर एक से बढ़ाये;
खेले छुआछुवौवल
दौड़े
किरण पसारे।
जो रोकती हैं डालें उनको डपट रही है,
पत्ते ड़े जो टूटे उनसे लिपट रही है;
हर एक टूटे दिल को-
माँ की तरह दुलारे।