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दान-पुण्य / असद ज़ैदी
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सिर्फ एक भूला-बिसरा सरकारी ज़िला अस्पताल ही
इक्कीसवीं सदी से आपकी रक्षा कर सकता है
और एक ज्ञानी कम्पाउन्डर जो हजामत के बाद
चेहरे पर फिटकरी की बट्टी रगड़ता है
मरने के लिए यह जगह बुरी नहीं है हकीम जी
कहता है वह बेड नम्बर 14 पर लेटे आदमी से
जो दरअसल घर के झगड़े-टण्टे से तंग आकर अक्सर
अस्पताल में भर्ती हो जाया करता है
सुना है, बड़े लोग इसी काम के लिए
बेदान्ता नाम के हस्पताल में जाते हैं
और एक एक पार्टी जाते-जाते अरे इतना दान
बेदान्ता में कर जाती है जितने में
हम हों तो दो-दो गऊशाला चार-पाँच पक्के प्याऊ बनवा दें
और एक कुआँ भी खुद जाए कि
मनुष्य का कल्याण हो और पशु का
और बाक़ी रहे जगत में दानकर्ता का नाम भी
कुछ लोग कुआँ खुदवाकर नामी हों
कुछ उसमें कूदकर