भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिल मोम सा / राजकिशोर सिंह
Kavita Kosh से
न ऽुशी है न गम है
न प्रकाश है न तम है
दिलबर की याद में
अब दिल में न दम है
न भय है न प्रीति है
मन जीने का कम है
गरमी है मगज में
पर आँऽों में नम है
कुछ बचा न घर में
पर मन में अहम है
कैसे रचूँ मेंहदी
द्वार ऽड़ा यम है
बाहर जग कुछ है
अंदर-अंदर शरम है
बाहर से दिऽता कठोर पर
दिल मोम सा नरम है।