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दीपमालिका / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

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दीपावलि के शुभागमन में खिली हृदय की कलियाँ।
गृह-गृह को शोभित करती हैं जगमग दीप-अवलियाँ॥
बीते युग की याद लिए प्रतिवर्ष पर्व यह आता।
रामराज्य का चित्र हृदय-पट पर चित्रित कर जाता॥

थी स्वराज्य में शान्ति, सौख्य-परिपूर्ण रही मानवता।
बल विज्ञान कला कौशल में कर न सका जग समता॥
यदपि आज स्वातन्त्र्य-सूर्य भारत में फिर से चमका।
पर विनाश हो सका न अब तक दुख-दारिद के तम का॥

बिलख रही मानवता, करती अट्टहास दानवता।
स्वार्थ-पूर्ण व्यवहार सभी का, छाई घोर विषमता॥
स्नेह-पूर्ण हों उर के दीपक, प्रकटे ज्योति उषा-सी।
एक-दूसरे का हित चिन्तक हो हर भारत-वासी॥

फूले-फले स्वदेश, सुखी हो पाकर पूर्व महत्ता।
सत्य, न्याय समता से हो संचालित अपनी सत्ता॥
घर-घर में हों रामराज्य-सी व्याप्त सिद्धियाँ सारी।
तब होंगे हम दीपमालिका के सच्चे अधिकारी॥