भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दीप / अंतराल / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
दीप, तुम्हें तो जलना होगा!
नभ के अगणित टिमटिम तारे,
जग के कितने जीवन-प्यारे,
बारी-बारी से सो जाएंगे,
सपनों का संसार बसाए
दीप, तुम्हें पर जलना होगा!
तूफ़ान मचेगा जब जग में,
गहरा तम छाएगा मग में,
जब हिल-हिल जाएंगे भूधर,
डोल उठेगा भूतल सारा
दीप, तुम्हें तब जलना होगा!
रचनाकाल: 1945