भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुःख / शीन काफ़ निज़ाम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं
हज़ार आँखों से
उसको देखता हूँ
वो
हज़ार हाथों से
मुझ को थामती है
हम हज़ारों कानों सुनवाए गए हैं
अब हज़ारों होंठों पर फैले हुए हैं
दीखने से
ज़्यादा दिखलाए गए हैं
और सुनवाए गए हैं
और फैलाए गए हैं
हम अभी तक अनछुए हैं