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दुख / संगीता गुप्ता

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दुख
नशा है, लत है
उसका सोग
मनाना अच्छा लगता है
वह बहुत अपना होता हे

दुख को भूलना
प्रिय मित्र से
बिछड़ने जैसा है
बिछड़ने के बाद भी
अकसर याद आता हे

उसकी मीठी तन्द्रा
तन - मन को
गुनगुने आलस से भर देती है
उससे उबरने की ताकत
बिरले में ही होती हे

यह सच है
फिर भी
मेरे बंधु
उठो, जागो
कम से कम
तुम तो
यह नशा करना छोड़ दो