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दैत रो दुंद / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
मिल्यो मैं
थां स्यूं
बां स्यूं
आ स्यूं
पण कोनी मिल्यो
निज स्यूं
जे मिल लेतो जि स्यूं
मिट ज्यातो आखर ही छन्द
अबैे तो फिरगी
बारोकर भीड़
अडीकूं कद हुवै छीड़ ?
जद कर स्यूं फेर
मांयनै दीठ
दीख ज्यासी परतच मनैं
अदीठ !