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दोनों रह जाएँगे / राजेन्द्र शाह
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मैं बिछड़ गया हूं मेले में
इन सबमें मुझे ढूँढ़ो कहीं ।
हो गया बहरा गगन कोलाहल में,
आवाज़ मेरी डूबती यहीं के यहीं
इतनी बह रही रंगों की तरंगें
परिचित मगर कहीं भी दिखता नहीं
थक गये पाँव, धूल भरी हथेली आँखों पर रखूँ
यह सूनापन भला कैसे सहूँ ?
दिवस हो चला धुंधला, जा बैठूँ घाट पर,
सब बिखर जायेंगे और दोनो रह जायेंगे ।
मूल गुजराती भाषा से अनुवाद : क्रान्ति