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दोस्त / मालिनी गौतम

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दोस्त
धूप-सी चिलचिलाती
ज़िन्दगी में उगे
घने दरख़्त हैं
 
जो हरते हैं मन का
ताप-सन्ताप,
पोंछते हैं
माथे पर छलकते
स्वेद-बिन्दु,

काँपते हाथों को
दृढ़ करते हैं
अपने प्रगाढ़ स्पर्श से,
छाले भरे पैरों को
समेट लेते हैं हथेलियों में,

वे बोते हैं बीज यारियों के
ताकि
सलामत रहें हम
आँधी-तूफान,धूप और बारिशों में

दोस्त और कुछ नहीं
बस एक हरा पेड़ होते हैं
जिसकी सघन छाया में
दोस्ती करती है कुछ देर विश्राम