भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दोहा / भाग 6 / महावीर उत्तरांचली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देह जाय तक थाम ले, राम नाम की डोर
फैले तीनों लोक तक, इस डोरी के छोर।51।
 
भक्तों में हैं कवि अमर, स्वामी तुलसीदास
'रामचरित मानस' रचा, राम भक्त ने ख़ास।52।
 
राम-कृष्ण के काज पर, रीझे सकल जहान
दोनों हरि के नाम हैं, दोनों रूप महान।53।
 
छूट गई मन की लगन, कहाँ मिलेंगे राम
पर नारी को देखकर, उपजा तन में काम।54।
 
सियाराम समझे नहीं, कैसा है ये भेद
सोने का कैसा हिरन, हुआ न कुछ भी खेद।55।
 
वाण लगा जब लखन को, हुए राम आधीर
मै भी त्यागूँ प्राण अब, रोते हैं रघुवीर।56।
 
मेघनाद की गरजना, रावन का अभिमान
राम-लखन तोड़ा किये, वक़्त बड़ा बलवान।57।
 
राम चले वनवास को, दशरथ ने दी जान
पछताई तब कैकयी, चूर हुआ अभिमान।58।
 
राजा दशरथ के यहाँ, हुए राम अवतार
कौशल्या माँ धन्य है, किया जगत उद्धार।59।

शुद्ध नहीं आबो-हवा, दूषित है आकाश
सभ्य आदमी कर रहा, स्वयं श्रृष्टि का नाश।60।