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दोहा सप्तक-36 / रंजना वर्मा
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हुआ कृषक मजबूर है, मिले नहीं सुख चैन।
दिन कटते अफ़सोस में, नींद बिना हर रैन।।
चार दिनों की जिंदगी, गयी व्यर्थ ही बीत।
हुए न आशिक़ श्याम के, सुना न शुभ संगीत।।
हरता मन - सन्ताप है, राधे जी का नाम।
जिसे नहीं जप कर थका, मनमोहन घनश्याम।।
मौन सदा ही वैर का, एक अचूक उपाय।
एकमात्र इस अस्त्र से, सब विवाद मिट जाय।।
गुंडे अब सरताज हैं, ईश बचाये देश।
गली गली होता रुदन, दूषित है परिवेश।।
बढ़ते जायें राह में, लिये हाथ मे हाथ।
ईश कृपा इतनी करे, कभी न छूटे साथ।।
निर्मित नया समाज हो, यदि हो मन मे प्यार।
बिना प्रेम के विश्व में, कौन किसी का यार।।