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दोहा सप्तक-56 / रंजना वर्मा

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प्रिय अपने सँग ले गये, मौसम के सब रंग।
अब प्रतिपल लड़नी हमें, है जीवन की जंग।।

मधु बसन्त पतझर हुआ, तुम बिन तन निष्प्रान।
त्रिविध समीरन लू बना, जीवन हुआ मसान।।

ये दो नैना जल भरे, टप टप टपके नीर।
सावन भादो आ बसे, इन आँखों के तीर।।

माँग काढ़ि सेंधुर भरे, नैननि कज्जल डार।
साजन सोन गयी मिलन को, झूमति झमकति नार।।

जाहु न हे सखि मिलन को, तुम साजन के पास।
चक्रवाक लखि चौंकिहैँ, तव मुख चन्द्र उजास।।

श्याम कहाँ तुम जा बसे, तोड़ दीन की आस।
दर्शन दे शीतल करो, इन नैनन की प्यास।।

श्याम छोड़ इस दीन को, कहाँ जा बसे नाथ।
मुझे बचा भव जलधि से, आज बढाओ हाथ।।