धनकटनी / पतझड़ / श्रीउमेश
ऐलोॅ छै हेमन्त अन्त करलें सरदोॅ के ससाज-सिंगार।
धान पकी केॅ झुकलोॅ छै भरतै गिरहस्तोॅ केॅ भंडार॥
पकलोॅ पीरोॅ धान लगै छै खेतोॅ में सीने-सानीं।
बन-बनिहार-किसान खुसी स नाची उठलोॅ छै दोनों॥
चोरें-च्ंडालें नैं कुछ पहुँचावे जेकरा स नुकसान।
मौरका में नरुआ तर धुसको केॅ जोगै छै वें खरिहान॥
सब में छै उत्साह कटनियां कचिया लेॅ केॅ ऐलोॅ छ।
पातन काटी केॅ रखलै छै, बोझोॅ बान्ही रहलोॅ छै॥
खरिहानी केॅ नीपी क मीहों गाड़ै छै ताले भाँय।
गामोॅ के बरदोॅ केॅ लानी, आजे करतै दौरी दाँय॥
गँवो बैठा धान ओसाय छै आरू नौरगी तोलै छै।
”रामें राम दुए जी दू“ ऊ बड़ी जोर से बोलै छै॥
मोरी में बीया बान्है छै, भरलोॅ बोरा खोलै छै।
कोनी दर में बकरी होतै? बनियां भाव टटोलै छै।
पचीमांय लगाबै छेली धनकटनी भर यहीं दुकान।
लड़ुआ चक्की सकरकद, बीड़ी, खैनी एतने सामान॥
बुतरु-बतरां लोर्ही-बाछी लानें छै खेतोॅ सें धान।
खूब नफा छै पंची माय केॅ कखनू नैं ओकरा नुकसान॥
दुटा-चार्टा लड़ुआ देॅ केॅ बुतरू केॅ फुसलावै छै।
फावोॅ में बीडी देॅ द केॅ कहनै के बहलाबै छै॥
बरै खिलाय के पान, गिरहस्तोॅ सें कुछ धान संघारै छै।
नौआँ ऐना देखलाबै छै आपनोॅ होॅक सुधोरै छेॅ॥
एन्है केॅ पौनियाँ आबै छै, गिरहस्तोॅ से लै छै धान।
हौ उदार गिरहस्त राखै पौनियाँ के सबटा मान॥