भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धरती-१ / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
धरती नें
औढ रखी है
धुंध
सूर्य से शर्माते ।
सूर्य भी खुश है
धरती ने उसकी
लाज़ बचाने का
अच्छा तरीका ढूंढ़ा है !
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"