भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धरा तरबूज दो फाँक / सत्यनारायण सोनी
Kavita Kosh से
गूगल अर्थ पर
'अर्थ' को गोल-गोल घुमाते हुए
बिटिया को याद आई अचानक
माखनलाल चतुर्वेदी की काव्य-पंक्तियाँ-
'मसल कर अपने इरादों-सी उठाकर
दो हथेली हैं कि पृथ्वी गोल कर दे?'
और उसने ज़ाहिर कर दी
पूरी कविता सुनने की जिज्ञासा ।
तब मैंने सुनाई मात्र यह पंक्ति उसे-
'धरा? यह तरबूज है दो फाँक कर दे ।'
सुनकर मुस्कुराई वह
और माऊस को हल्का-सा टर्न देकर
एक बार और जोर से घुमाया
और छोड़ दिया
देर तक घूमने के लिए 'धरा' को।
सोचा,
इस तरह भी याद आती हैं कविताएँ!