धुआँई आँख की तरह / पुष्पिता
उत्तरी अमेरिका के 'व्हाइट-हाउस' से
प्राचीन अधिक 'दक्षिण अमेरिका' के
सूरीनाम का पारामारिको का राष्ट्रपति-भवन
(व्हाइट-हाउस)
राष्ट्रपति नहीं, राष्ट्र की आँखें रहती है
राष्ट्र के लिए स्वप्न देखती हुई।
श्वेत-भवन
जिसकी सफ़ेदी को स्याह
बना रहा है-समय।
राष्ट्रपति के निवास के बिना
आत्महीन हो-'व्हाइट-हाउस'
चुप जैसे-दृष्टि के बगैर
आँखों के बचे हैं कोटर या
किसी समझदार बुजुर्ग की
निष्पलक धुआँई आँख की तरह।
सूरज जगाता है रोज़
पर, राष्ट्र के भीतर
सोता है-राष्ट्रपति भवन।
अतीत की किन्हीं यादों को
इतिहास पट्टिका की तरह
अपनी आँखों में बाँधे हुए।
देखता है-ख्राफन स्त्रात-वातरकान्त स्त्रात
और सूरीनाम नदी का जीवंत-आवेग
स्वीकार करता है कई देशों की
ध्वजाओं की आत्मीय सलामी
मुँदी आँखों में।
द्वितीय विश्वयुद्ध में
शहीद हुए जापानियों की स्मृति में
खड़े स्मारक के समक्ष चुपचाप नतमस्तक
जिसे देखती है
बारनेत लिओन,<ref>विदेशी मजदूरों के व्यवस्थापक अधिष्ठाता जनरल ।</ref>
जोहेन फेरइ<ref>सूरिनाम का अंतिम गर्वनर और प्रथम राष्ट्रपति ।</ref>
योनहॉन पैंगल<ref>सूरीनाम्न की 'नेशनल पार्टी' की तरफ़ से सूरीनाम के प्रधानमंत्री ।</ref>
एलिस सेसर दे मिरांडा की<ref>सूरि९नाम के प्रथम प्रधानमंत्री ।</ref>
पथरा चुकी आँखें।
कभी गवर्नमेंट फील्ड रह चुकी मैदान की
भवन-घड़ी-घंटा-दर-घंटा
समय खोलती हुई भी
नहीं खोल पाती है
व्हाइट-हाउस के दरवाज़े और खिड़कियाँ।
प्रति रविवार को
सूर्यादय के साथ
आजकल इंडिपेंडेन्ट-फील्ड की
फुलेरी घास-मैदान पर
सूरीनाम नदी की लहरियों धुन-बीच
पक्षी-प्रेमी रईस
भोर-ही-भोर
नियत जगह पर
अपना छड़ गाड़
टाँगते हैं अपना 'प्राणप्रिय पखेरू' पिंजरा।
पक्षी गाते हैं-वही गीत
जो उन्हें सुनाया जाता है-उसी समय
एक्सटेम्पोर भाषण की तरह
कमी कैसेट से सुनकर गाते हैं गीत
आधुनिक संगीतकार
ध्वनिवेत्ता और भाषा-वैज्ञानिक हैं पक्षी
त्वास्त्त्वा, पापाखोई, सुरचंबी, खेइलवैख, रौउती हैं गायक पक्षी।
सुनता है-सोया हुआ व्हाइट-हाउस
पक्षियों का संगीतमय आनंद
रंगो और ध्वनियों का खुशमिजाज़ दिन।
असेम्बली की इमारत भी
देखती है चुपचाप-चुने हुए पक्षियों का जुटाव
देश के चुने हुए प्रतिनिधियों से
कहीं अधिक सार्थक।
राष्ट्रपति भवन की बाईं तरफ
घड़ी भवन के दाईं तरफ-सड़क पार
लेफ़्टिस्ट ताकतों के विरूद्ध
हॉलैन्ड के 25 फरवरी 1980 के
मिलट्री आक्रमण की
दर्दनाक अग्निमूलक कथा
काली-कोयला हो चुकी
लकडिय़ों में अब भी शेष है
मनुष्यता और स्वाधीनता के विरूद्ध
नृशंसता की काली करतूत के दाह-चिह्न।
श्मशानी इतिहास
जिसकी मिट्टी में
कोई पौधा उगने में
अब भी थरथराता है।