भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धूमकेतु या पुच्छल तारा / बालकृष्ण गर्ग
Kavita Kosh से
झाड़ू-जैसी लंबी-सी दुम
इसके पीछे देखोगे तुम।
भाप-धुएँ जैसी लगती वह,
‘धूमकेतु’ सब तभी रहे कह।
बहुत बड़ा यदि गिरे धरा पर,
जीवन सब हो जाय बराबर।
धूमकेतु है पुच्छल तारा,
अदभुत इसका लगे नजारा।
[रचना : 11 जून 1996