धूमावती / पयस्विनी / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
धयल षोडशी श्यामा सुषमा धामा अपन नयान
कयल त्रिपुर - सुन्दरी नयन-अभिरामा अनुखन ध्यान
कर-कमला कोमल कमला कय हृदय-कमल सन्धान
तारिणि तारा तरल द्वितीया दिस टकटकी निदान
छली शारदा हमर उपास्या वीणा पुस्तक संग
स्मितमुखि गीत कवित संगीत ललित लय भरथि उमंग
अथवा मदिरारुण - नयना मधु-बयना छवि छविवंति
घर-आङन चानन छिटकाबथि भरथि सुरभि रसवंति
किन्तु नियत छल, उचरल मंत्र अदृष्ट, दृष्ट परिणाम
इष्ट बनलि अयली घर हमर अदृष्ट देवता वाम
धूमावती सती, वयसा वरिष्ठ बचसा कटु क्लिष्ट
रूप विरूपा, प्रकृति अनूपा, कृतिहु विकृत, नहि शिष्ट
मलिन वसन घर-द्वारि बहारथि बाढ़नि हाथहि नित्य
जेना कोनो आयलि छथि बेतन-भोगनि कोनहु भृत्य
सूप हाथ किछु - किछु सदिखन फटकैत अन्न भरिपूर
बिच-बिच गुन-गुन सोहर-लगनी गबइत बिनु धुनि सूर
शय्या-गृह सँ भनसा घर जनिका रुचि बढ़ल विशेष
जे पड़ोसिनिक बात पुछै छथि, खबरि न देश-बिदेश
ज्ञान जनिक बच्चा-जच्चा धरि ध्यानो धरय कुटुम्ब
अक्षर जनिक गोसा´ि ना´ो धरि पोथी पतरा लम्ब
मन छल विमन, कोना खन काटव बिरुचि, न रुचि विज्ञान
दृगक पियास मेटैत कोना? ताकल भगवति-भगवान!!
देखल अहा भगवती! धूमावती निरूपति रूप!
स्वयं महाविद्या परतच्छे तन - मन सबहु अनूप!
स्वर्ण अन्नसँ भरल सूप, बाढनि स्वच्छता प्रतीक
श्रमक स्वास्थ्य-सौन्दर्य दिव्य आन्तरिक रूप रुचि लीक
पुनि छलि लगहिं छिन्नमस्ता करइत जे नव संकेत
छिन्न अपन मस्तक कय उर-रुधिरहु दय भरी निकेत
विदित महाविद्या धूमावति हमर देवता इष्ट!
धन्य जीवनक क्षण, क्षणभरि यदि दर्शन पुरल अभीष्ट
श्यामा उमा अन्नपूर्णा सभ एतय समन्वित रूप
धन्य कयल अनुरक्त भक्त केँ, जयतु देवि अनुरूप