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नज़्म की आड़ से / पंछी जालौनवी
Kavita Kosh से
मैं अपनी ही
आवाज़ से घबरा कर
ख़ुदमें कहीं छुप जाता हूँ
मैं अपने ही
ख़यालों से कतरा कर
ख़ुदसे कहीं गुज़र जाता हूँ
मैं कभी
किसी नज़्म की आड़ से
पढ़ता हूं ख़ुद अपना लिक्खा
मैं कभी सुनता हूं चोरी से
अपनी वो बातें भी
जो मुझे अभी कहनी हैं ॥