नदिया धीरे-धीरे / प्रमोद तिवारी
नदिया धीरे-धीरे बहना
नदिया घाट-घाट से कहना
मीठी-मीठी है मेरी धार
खारा-खारा सारा संसार
तुझको बहते जाना है
सागर का घर पाना है
सागर से पहले तुझको
गागर-गागर जाना है
सागर की बहना नदिया
गागर से कहना नदिया
गति में है जीवन का शृंगार
बांधो न पावों में दीवार
रस्ते मुश्किल होते हैं
फिर भी हासिल होते हैं
बहते पानी के संग-संग
प्यासों के दिल होते हैं
बहना,
बस बहना नदिया
कुछ भी हो
सहना नदिया
सब पे लुटाना
अपना प्यार
कहना
इसको कहते हैं धार
सीमाएं क्या होती हैं
कैसे तोड़ी जाती हैं
तोड़ी सीमाएं फिर से
कैसे जोड़ी जाती हैं
सबको समझाना
नदिया
सबको बतलाना
नदिया
सीमाओं में भी है विस्तार
साधो न लहरों पर तलवार
प्रचलित गतियों से बचना
अपना पथ खुद ही रचना
अपनी रचना में तुमको
झलकेंगी गंगा-जमुना
अपना पथ
अपना होगा
अपना रथ
अपना होगा
अपनी ही होगी
फिर रफ्तार
अपनी कश्ती
अपनी पतवार
सागर के घर सब जाना
थोड़ा सोना सुस्ताना
स्थिरता का सुख
क्या है
इसकी तह तक भी जाना
किरनें सिर पर नाचेंगी
सूरज का खत बाचेंगी
खत में होगा जीवन का सार
लेना फिर बादल का अवतार
नदिया धीरे-धीरे बहना...
नदिया घाट-घाट से कहना...
मैं ही हूँ बादल का अवतार
फिर मैं गाऊँगा गीत मल्हार