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नदी / जगदीश जोशी / क्रान्ति कनाटे
Kavita Kosh से
स्मृतियों और सपनों के बीच
एक नदी ।
नदी में मछलियों के प्रतिबिम्ब उड़ रहे हैं
कीचड़ में धँसे सूरज में दरारें पड़ गई हैं
नदी किनारे पेड़ पर
पक्षी की परछाई घोंसला बना रही है
घोंसले को सेती है शिकारी की आँख ।
नदी सर्दियों में जम जाती है
और गर्मियों में सूख जाती है
सदियों से जैसे बारिश नहीं हुई और
पानी में इन्द्रधनुष नहीं खिले ।
स्मृतियों और सपनों के बीच
एक नदी
मूल गुजराती से अनुवाद : क्रान्ति कनाटे